Wednesday, July 25, 2018

इमरान ख़ान: सियासी कमान लेने की दहलीज पर खड़ा कप्तान

इमरान ख़ान, इस नाम के आते ही दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में वो चेहरा आता है जिसने पाकिस्तान को 1992 का वर्ल्ड कप दिलाया.
करीब दो दशकों तक क्रिकेट पर राज करने के बाद इमरान ख़ान ने संन्यास ले लिया और फिर उन्होंने राजनीति में कदम रखा.
आज स्थिति यह है कि 22 साल पहले पाकिस्तान की राजनीति में कदम रखने वाले जिस इमरान ख़ान को बतौर राजनेता कभी उतनी तवज्जो नहीं मिली वो ही पाकिस्तान की सियासी कमान संभालने की कगार पर खड़े हैं.
राजनीतिक पारी की शुरुआत में जिस इमरान ख़ान को पाकिस्तानी मीडिया और वहां की आवाम तवज्जो नहीं देती थी, अब महिलाओं और युवाओं का एक बड़ा वर्ग उनका समर्थन कर रहा है.
इसके पीछे बड़ी वजह आम तौर पर उनका राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में विवादों से दूर रहना है.
आज इमरान ख़ान की पहचान एक क्रिकेटर से कहीं अधिक उनकी राजनीतिक सक्रियता की वजह से है. गाहे बगाहे वो क्रिकेट कमेंटेटर के रूप में भी दिख जाते हैं. क्रिकेट से संन्यास के बाद और राजनीति में आने से पहले इमरान ख़ान ने दुनियाभर में चंदा इकट्ठा कर 2008 में अपनी मां शौकत ख़ानम के नाम पर एक कैंसर अस्पताल बनवाया.
1996 में अपनी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ के गठन के बाद से इमरान पाकिस्तान की संसद के लिए निर्वाचित अपनी पार्टी के एकमात्र सदस्य रहे. 2002 से 2007 तक उन्होंने नेशनल असेंबली में मियांवाली का प्रतिनिधित्व किया.
राजनीति के शुरुआती वर्षों में इमरान ख़ान की गंभीरता से नहीं लिया जाता था और उनसे जुड़ी अधिकांश ख़बरें एक कॉलम का जगह ही पाती थीं.
1996 में इमरान ख़ान पाकिस्तान की राजनीति में उतरे उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की स्थापना की. लेकिन एक साल बाद देश में हुए आम चुनावों में उनकी पार्टी कोई सीट नहीं जीत सकी.
इमरान ख़ान ने 1999 में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के सैन्य तख्ता पलट का समर्थन किया लेकिन 2002 के आम चुनावों से पहले मुशर्रफ़ की आलोचना की.
2002 में इमरान की पार्टी को केवल 0.8 फ़ीसदी वोट और 272 में से केवल एक सीट मिली. तब इमरान ख़ान खुद मियांवाली के एनए-71 निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे.
बतौर सांसद इमरान ख़ान कश्मीर और लोकलेखा की स्थायी समिति के सदस्य रहे. उन्होंने राष्ट्रपति मुशर्रफ़ को अमरीकी राष्ट्रपति का जूता चाटने वाला बताया.
इमरान ख़ान को उनके विरोध प्रदर्शन के कारण उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया.
3 नवंबर 2007 में राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान में आपातकाल घोषित कर दिया. इमरान ने इसके लिए मुशर्रफ़ के लिए मृत्युदंड की मांग की जिसे उन्होंने 'देशद्रोह' माना. इमरान ख़ान को एक बार फिर नज़रबंद कर दिया गया लेकिन इमरान वहां से फरार हो गए.
उन पर आतंकवाद अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए. उन्हें डेरा गाज़ी ख़ान जेल में बंद कर दिया जहां केवल रिश्तेदारों को मिलने की अनुमति थी. उन्होंने जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी. बाद में 21 नवंबर को राजनीतिक कैदियों के साथ साथ उन्हें भी जेल से रिहा कर दिया गया.
फरवरी 2008 में उनकी पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार किया. मार्च 2009 में इमरान एक बार फिर नज़रबंद किये गए. सरकार विरोधी प्रदर्शन को लेकर इस बार आसिफ़ अली ज़रदारी सरकार ने उन्हें उनके घर में बंद कर दिया.
इसके बाद 2013 के चुनाव के लिए इमरान ने एक रणनीति के तहत काम किया. उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उछाला और अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर एरिया में अमरीकी ड्रोन हमलों का विरोध किया.
इमरान अपनी राजनीति में स्वच्छ सरकार, भ्रष्टाचार विरोधी क़ानून, स्वतंत्र न्यायपालिका, दुरुस्त पुलिस व्यवस्था और आंतकवाद विरोधी पाकिस्तान की वकालत करते हैं.
25 नवम्बर 1952 को जन्मे इमरान ख़ान ने लाहौर के एचीसन कॉलेज, कैथेड्रल स्कूल और इंग्लैंड के रॉयल ग्रामर स्कूल में पढ़ाई की. उन्होंने केबल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई भी की है.
क्रिकेट खेलने के दौरान इमरान ख़ान की छवि क्लबों और पार्टियों में जाने और लगातार रोमांस से जुड़े रहने वाले युवा की बनी. बाद में इमरान ख़ान ने 1995 में ब्रिटिश जेमिमा गोल्डस्मिथ से निकाह किया.
जेमिमा से इमरान के दो बेटे हैं. लेकिन नौ साल तक साथ रहने के बाद जेमिमा और इमरान का 2004 में तलाक़ हो गया.
इमरान ख़ान कितने बड़े क्रिकेटर रहे हैं इसका अंदाजा इसी से लग जाता है कि वो पाकिस्तान के ऐसे क्रिकेटर हैं जिनके संन्यास (1987 में) लेने के बाद उन्हें राष्ट्रीय टीम के लिए दुबारा (1988 में) बुलाया गया और फिर 39 साल की उम्र में उन्होंने बतौर कप्तान पाकिस्तान को उसका एकमात्र वर्ल्ड कप दिलाया.
महज 16 साल की उम्र में इमरान ख़ान ने लाहौर में एक फीके प्रदर्शन के साथ अपनी क्रिकेट करियर शुरू किया. वो अपने देश की घरेलू टीमों के लिए उतरे तो वहीं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ब्लूज़ क्रिकेट टीम का हिस्सा भी रहे और काउंटी क्रिकेट भी खेले. आखिरकार 1971 में उन्हें इंग्लैंड के ख़िलाफ़ बर्मिंघम टेस्ट के लिए पाकिस्तान की टीम में जगह मिली.
तीन साल बाद इमरान को वनडे टीम में भी जगह मिल गई. इसके बाद अपने प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली. क्रिकेट की दुनिया में इमरान की पहचान एक तेज़ गेंदबाज़ के रूप में 1978 में पर्थ में आयोजित एक समारोह में उनके फेंके गए 139.7 किलोमीटर की रफ़्तार से फेंकी गई गेंद की वजह से हुई.
इस दौरान इमरान ख़ान ने डेनिस लिली और एंडी रॉबर्ट्स जैसे गेंदबाज़ों को पीछे छोड़ दिया और तीसरे स्थान पर रहे. उनसे आगे माइकल होल्डिंग, जेफ़ थॉमसन थे.
इमरान ख़ान ने 88 टेस्ट मैचों में छह शतक और 18 अर्धशतकों की मदद से 3,807 रन बनाए और 362 विकेट लिए. क्रिकेट से संन्यास के वक्त इमरान ख़ान पाकिस्तान के सर्वाधिक टेस्ट विकेट लेने वाले गेंदबाज़ थे.
दो दशक के क्रिकेट करियर में इमरान की शुरुआती पहचान ऑलराउंडर गेंदबाज़ के रूप में हुई वहीं बाद में जब उन्होंने 1982 में जावेद मियांदाद से कप्तानी संभाली तब वो बहुत शर्मीले व्यक्ति थे. शुरुआती टीम बैठकों में वो टीम से बात नहीं कर पाते थे.
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वर्ल्ड कप जीतने वाले कप्तान

हालांकि इसके बाद बतौर कप्तान और एक क्रिकेटर उनकी उपलब्धियां शिखर पर रहीं. इंग्लैंड को उसकी जमीं पर हराना, भारत के ख़िलाफ़ घरेलू सिरीज़ के छह टेस्ट में 40 विकेट चटकाना, श्रीलंका के ख़िलाफ़ करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और पहले ही साल बतौर कप्तान 13 टेस्ट में 88 विकेट लेने का कारनामा करना उनके शुरुआती कारनामे रहे.
इसके बाद वो चोटिल हो गए और करीब दो साल तक क्रिकेट से बाहर रहने के बाद भारत के ख़िलाफ़ भारत में ही टेस्ट सिरीज़ जीतने के साथ वापसी की. इंग्लैंड को उसी की सरजमीं पर हराया. लेकिन 1987 वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में हारने के बाद संन्यास ले लिया लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के आग्रह पर दोबारा कप्तानी संभाली और वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ तीन टेस्ट में 23 विकेट लेकर अपनी जोरदार वापसी का एलान कर दिया.
एक कप्तान और क्रिकेटर के रूप में उनके करियर का सबसे बड़ा मुकाम तब आया जब उन्होंने 1992 वर्ल्ड कप में टीम का नेतृत्व किया. इमरान ने न केवल पाकिस्तान को पहली बार वर्ल्ड कप दिलाया बल्कि 39 साल की उम्र में भी अपनी टीम की ओर से टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा रन उन्होंने ही बनाए.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इमरान ख़ान ने यह स्वीकार किया कि कभी उन्होंने गेंद से छेड़छाड़ की थी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा काउंटी के एक मैच में किया था.
राजनीति में आने से पहले इमरान ख़ान ने यह भी कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के चुनाव में कभी वोट नहीं डाले. बहरहाल चुनाव में इमरान ख़ान की पार्टी की जीत से पाकिस्तान की राजनीति पर भुट्टो और शरीफ़ के परिवार के दशकों तक रहे वर्चस्व का खात्मा हो गया है.
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